प्यार, खुशी, आध्यात्मिक जागृति, आत्म चिकित्सा, और आकर्षण का सिद्धांत क्या होता है 




प्यार एक बहुत ही अनोखी और अद्भुत चीज है। प्यार एक सकारात्मक धारणा है। और यह परमेश्वर से निकलती है जो परमेश्वर ने प्यार हमसे किया वह कोई और हमसे नहीं कर सकता। वह परमेश्वर ही है जो हमें प्यार करना सिखाता है क्योंकि प्यार एक ऐसा एहसास है जिसके अंदर बहुत सारे गुण होते हैं। किसी इंसान का दूसरे इंसान के प्रति प्यार तो खत्म हो सकता है पर लेकिन परमेश्वर का प्यार अनंत है और असीमत है। वह कभी भी ना खत्म होने वाला प्यार है क्योंकि उसने हमें इतना प्यार किया जो वह प्राण के रूप में हमारे बीच आया जिसको हमने यीशु के नाम से जाना है और उसने जो प्यार हमसे किया वह सबसे अद्भुत है। प्यार परमेश्वर है और प्यार उसी में बसता है उसके अलावा कुछ नहीं सब कुछ वही है। जब हम एक दूसरे से बैर रखते हैं तो हम परमेश्वर से बैर रखते हैं क्योंकि जब हम कहते हैं कि मेरा कोई दुश्मन है और मैं उससे पैर रखता हूं और हम कहते हैं कि मैं अपने आप से और अपने परिवार वालों से या अपने दोस्तों से प्यार करता हूं। तब वह इंसान झूठ बोल रहा है उसने प्यार को जाना ही नहीं है। क्योंकि जिस अपने दुश्मन से वह बैर रखना है परमेश्वर तो उसके अंदर भी बसता है और परमेश्वर तो उस इंसान के अंदर भी और उसके रिश्तेदारों में भी बसता है। 



What is Love Happiness Spirituality and Law of Attraction
Love Happiness Spirituality and Law of Attraction


परमेश्वर का प्यार क्या है?


         इसलिए परमेश्वर का प्यार इसी से स्पष्ट होता है कि चाहे कोई भी इंसान हो अच्छा या बुरा हमारा दोस्त या दुश्मन, हमें सब से प्यार करना चाहिए और परमेश्वर का सबसे बड़ा हुकम यही है। क्योंकि प्यार की फीलिंग दुनिया की सबसे बड़ी फीलिंग है। हम सब प्यार से ही पैदा हुए हैं और प्यार नहीं ही हमें अभी तक बनाए रखा है। प्यार ही हमारे भीतर मौजूद है और हम प्यार के अंदर मौजूद हैं। वह परमेश्वर सचमुच में ही प्यार है क्योंकि उसने हमको जीना सिखाया। हमारे लिए अच्छी-अच्छी मार्ग बनाएँ। ताकि हम उन बातों को जान सकें जिनको जानने की हम कोशिश भी नहीं कर सकते थे। 1 यूहन्ना 4: 7 हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है और परमेश्वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्यार है।  


परमेश्वर कहां रहता है?


        क्या परमेश्वर हमारे अंदर है? क्या परमेश्वर ही प्यार है? और परमेश्वर कहां है? परमेश्वर एक जिंदा और जागता हुआ एहसास है। परमेश्वर को हम देख तो नहीं सकते पर लेकिन जब उसके काम हमारे अंदर आ जाएं तब हम उसे महसूस कर सकते हैं। परमेश्वर एक सकारात्मक सोच है जो हमारे मन में अगर आ जाए तो हमारे अंदर रोशनी जला देती है। और हमारे रास्तों को उसका जलाल रोशन कर देता है। परमेश्वर का वचन जो उसने अपने मुंह से हमारे लिए बोला है और परमेश्वर की सोच, उसकी योजनाएं जो उसने हमारे लिए बनाई है जब वह हमारी जिंदगी में कार्य करती हैं तो वह हमारे रास्तों को रोशन कर देती और हमें एक मजबूत इंसान बना देती है। भजन 119: 105 तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।  


क्या हमें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए?


         हम अभी तक जिंदा हैं यह भी परमेश्वर का प्रेम है। इसके बदले हम परमेश्वर को क्या दे सकते हैं जो उसने हमें इतना कुछ दिया। जो परमेश्वर ने हमें रहने के लिए घर, धन दौलत, सोने के लिए छत, खाने के लिए रोटी और सबसे अधिक और सबसे बड़ी बात जो उसने हमें आत्मिक भोजन दिया। उसने ही हमारे लिए रास्ता बनाया कि हम उसकी परस्तिष कर सकें। इसके बदले में हम परमेश्वर को क्या दे सकते हैं क्या पैसा? क्या अपना घर बाहर? क्या अपना सब कुछ? लेकिन इसके बदले में हम परमेश्वर को कुछ भी नहीं दे सकती क्योंकि सब कुछ जो हमारे पास है वह उसी का ही है। और हम उसी की चीज उसी को ही नहीं दे सकते। हमारे पास कोई शब्द नहीं है परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए बल्कि धन्यवाद के इलावा भी। कौन सी ऐसी चीज है जो हम उसे दे सकती हैं कुछ भी नहीं है। सब कुछ उसी ने ही बनाया है, उसी ने ही संवारा है और वही सब कुछ खत्म कर सकता। हम तो बस एक सांस की तरह हैं जो आती है और जाती है। पर लेकिन ऐसी क्या एक चीज हो सकती है जो हम उसे दे सकते हैं। 


           वह एकमात्र चीज है हमारी जिंदगी। सिर्फ हमारे पास हमारी जिंदगी ही है इसके अलावा जो कुछ है वह परमेश्वर का है पर लेकिन हमें भी उसने ही बनाया है हम भी उसके ही हैं। इसलिए हमें आत्मसमर्पण करने की जरूरत है। और अपनी जिंदगी को परमेश्वर के नाम लगाने की जरूरत है। कितना देर हम बुराई में फंसे रहेंगे, कितनी देर तक हम बुरे काम करते रहेंगे, क्या अंत तक? कब हम अपनी बुरे बुरे कामों को छोड़ेंगे। आखिर हमें मरना भी तो है ना, यह तो नहीं है कि हम हमेशा के लिए यहां पर रह सकते हैं। इसलिए अगर हमें मरना ही है मतलब कि हमें अपने शरीर में मरना ही है तो हम क्यों ना अपनी जिंदगी को परमेश्वर को दे दें। क्योंकि उसकी मर्जी हमारी जिंदगी से पूरी हो और हम उसके मार्ग को सीधा कर सकें और उसका जलाल हमारे ऊपर आ सके। बस यही एक तरह का प्रेम है जो हम परमेश्वर से कर सकते हैं इसके अलावा और कुछ नहीं। 


असली खुशी कहां है?


जो असली खुशी है वह आपके अंदर है क्योंकि आप एक खुशी का स्रोत हो। जब आप अपने अंदर जाओगे और अपने अंदर खुशी को ढूंढोगे तो आपको ज़बरदस्ती अपने आप को खुश रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि असली खुशी इंसान वह नहीं है जिसके सिर्फ चेहरे पर खुशी हैं, यान जिसके पास बहुत अधिक धन दौलत है, जिसके पास सब कुछ है, जिसको कोई कमी नहीं है। इंसान जितना भी धन दौलत यहां जितनी भी रिश्तेदारियों को कमा ले वह तब तक खुश नहीं रह सकता जब तक उसे संपूर्ण संतुष्टि ना मिल जाए। जब हमें अपने अंदर से आनंद और संतुष्टि का एहसास हो जाए तब ही हम खुश रह सकते हैं। और वह इंसान ही खुश है जो अपने अंदर से खुश हैं। जो अपनी कीमत को जानता है कि उसको परमेश्वर ने कितना कीमती बनाया है। उसका अपनी जिंदगी में मकसद क्या है और वह परमेश्वर की योजनाओं को पूरा करने के लिए क्या कर रहा है। असली खुशी आत्मा के कामों में है ना कि शरीर के कामों में। क्योंकि जो शरीर की कामनाएं हैं वह नुकसानदेह है पर जो आत्मा की खुशी है वह संपूर्ण है और वह खुशी कभी भी ना खत्म होने वाली खुशी है। 


हम खुश क्यों होते हैं?


        उस वक्त क्या होता है जब हम एक बहुत खूबसूरत दृश्य देखते हैं, अपनी मनपसंद फिल्मों को देखते हैं, लोगों को सफल होते हुए देखते हैं, कोई हास्य व्यंग देखते हैं। तब हम बहुत खुश होती हैं और हमें लगता है कि हम ही सब से खुश इंसान हैं। 


पर अपने आप को देखो और यह सोच कर देखो कि आप हमेशा और हर वक्त खुश रह सकते हैं या नहीं। क्या आप हर एक पल हर एक सेकंड का आनंद लेते हैं। हम अपने बाहर से या हास्य व्यंग से खुश हो सकती हैं पर लेकिन वह खुशी बहुत ही थोड़े समय के लिए ही होती है। असली खुशी जो हमारे अंदर हैं उसका हमें पता ही नहीं होता। असली खुशी असली मोहब्बत आपके अंदर से निकलती है। अगर हमें किस खुशी तक पहुंचना है जो हमारे बहुत करीब जो हमारे अंदर है तुम हमें अपने अंदर पहुंचने के लिए प्रयास करना पड़ेगा। उसके लिए आपको किसी बाहरी वस्तु की जरूरत नहीं पड़ेगी आपको सिर्फ अपने आप की जरूरत पड़ेगी। और आप खुद की मदद से ही अपने अंदर पहुंच सकते हैं। जब आपका मन खुलेगा तब आपको आत्मिक जागृति का एहसास होगा। और वहां पर आपको खुशी मिलेगी क्योंकि परमेश्वर आपके अंदर है। जितनी भी गुण परमेश्वर में मौजूद है वह सब हमारे अंदर आ जाते हैं जब हम अपने अंदर को देखते हैं। 


अपने अंदर को कैसे देखें?


       अपने अंदर पहुंचना बहुत आसान है बस हमें कहीं भी बैठकर अपनी शारीरिक आंखों को बंद करके अपनी आत्मिक आंखों को खोलना पड़ेगा ताकि हम अपने अंदर झांक सकें। और वह सब कुछ आपको अपने अंदर मिलेगा जो परमेश्वर नहीं है। क्योंकि हमने बहुत बार सुना है कि परमेश्वर हमारे अंदर है और यही सच है। सबसे पहले अपने आप को प्यार करना सीखो जब हम अपनी कीमत को जान गए और अपने आप को जान गए तो हम परमेश्वर को जान गए। 


स्वयं से प्यार कैसे करें?


         इसके लिए हमें स्वयं से प्यार करना पड़ेगा और हर सुबह और शाम सकारात्मक एफर्मेशंस, प्रार्थना, ध्यान और अपने आप को समय देना पड़ेगा। जितना समय आप अपने आप को दोगे उतना ही आपको वापस मिलेगा और जो आपको वापस मिलेगा उसी को खुशी कहते हैं। जो आपके अंदर से निकलेगी। जब इंसान की सोच सकारात्मक होती है तब उसकी बातें भी सकारात्मक होती हैं। सबसे पहले खुद से, परमेश्वर से, हर एक से प्यार करो। क्योंकि जो खुद से प्यार करता है वह खुदा से प्यार करता है और जो खुद को नहीं जानता वह परमेश्वर को नहीं जानता। हमारा आत्मिक संसार इतना बड़ा और इतना गहरा है कि वह हमारे बाहरी संसार से भी बड़ा है। जब आप अपने अंदर जाओगे तो आपको सकारात्मकता का एहसास होगा और आप हर एक नकारात्मक बाद में भी सकारात्मक बात को ढूंढ ही लोगे। बस इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी और सबसे ज्यादा जिस चीज पर ध्यान देना है वह है आपका मन। जब हमने अपने मन को नियंत्रण करना सीख लिया और जो हम चाहते हैं वह अपने मन से करवाया तब हम किसी भी काम को बहुत आसानी से कर पाएंगे।


हमें कौन सा बलिदान करना पड़ेगा?


उसके लिए आपको बलिदान तो करना ही पड़ेगा, आपको बलिदान करना पड़ेगा अपनी उन आदतों का जो आपको सकारात्मकता से दूर ले जाती हैं। आपको बलिदान करना पड़ेगा और छोड़ना पड़ेगा उन कामों का जो आपको परमेश्वर से दूर करते हैं और जब आप अपने अंदर जाओगे आप अपने आप को पा लोगे। आपके मन में जो अभी तक कचरा भरा हुआ है, जैसी चीजें आप देखते हो, जो आप सुनते हो, जैसे काम आप करते हो उन गलत कामों की जगह पर वह काम करने शुरू करने पड़ेंगे जिससे हमारा मन बदल सके। जो काम हमारे मन को दोबारा से बना दे। वह काम सिर्फ अपनी कम ही हो सकते हैं। जैसी आपको पहले भी बताया गया है आपके आत्मिक काम अपने आप से सकारात्मक चीजें बोलना, प्रार्थना, ध्यान करना, वर्कआउट करना बस यही चीजें हैं जो हमारी मन की जड़ों को उखाड़ कर बाहर फेंक सकतें हैं।


आत्मिक जागृति क्या है?


 जब हम शरीर के कामों को छोड़कर आत्मिक कामों में आ जाते हैं तब हमारी आत्मिक जिंदगी की शुरुआत हो जाती है और हम अपनी आत्मा को देख सकते हैं। हमारी आत्मा में वह सब सकारात्मक भावनाएं मौजूद होती हैं। एक आत्मिक इंसान के अंदर प्यार, शांति, दयालुता, एक बड़ी सोच, एक सकारात्मक सोच, एक सकारात्मक मन, एक खूबसूरत और हसीन जिंदगी। एक आत्मिक इंसान के अंदर परमेश्वर की मौजूदगी होती है। वह परमेश्वर से बात कर सकता है और परमेश्वर उसकी सुनता है क्योंकि आत्मा में जाने से हमारी आत्मा परमेश्वर की पवित्र आत्मा के साथ जुड़ जाती है। जब हम प्रार्थना करते हैं तो हम बोलते हैं और परमेश्वर सुनता है और जब हम ध्यान करते हैं तब परमेश्वर बोलता है और हम सुन सकते हैं। इसलिए ध्यान करना मतलब कि परमेश्वर के शब्दों पर ध्यान करना हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। 


           जब हम आत्मा में होते हैं तभी हम नए-नए विचारों को अपने मन में जन्म देते हैं जो हमारी आने वाली जिंदगी के लिए कारगर साबित हो सकते हैं। तब असल में परमेश्वर ही हमें चला रहा होता है और वही हमारी अगवाई करता है। वही हमें रास्ता दिखाता है हम अपने मजबूत मन से ही अपनी मंजिल को देखते हैं और मजबूत मन से ही योजनाएं बनाकर हम अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। और हमारी आत्मिकता इसमें हमारी मदद करती है। 


अगर किसी इंसान के अंदर आत्मिक भावनाएं नहीं है मतलब की उसका दिल अभी भी नफरत से भरा हुआ है। कहीं भी प्यार नहीं है, आप हमेशा गुस्से में रहते हो। हमेशा ही चिड़चिड़ापन रहता है। कोई भी खुशी की किरण नहीं है तब समझ लो कि आप एक शारीरिक इंसान हो और शारीरिक बोझ के नीचे आकर मर जाओगे। एक सकारात्मक भावना, जैसी प्यार, खुशी, शांति बल्कि मानसिक शांति आपकी जिंदगी को बदल सकती है और आपको शारीरिक से आत्मिक इंसान बना सकते हैं। 


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